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श्री राधिका-जीवन नीलमणि ! अहम् त्वां शरणम प्रपन्ना |
-श्रीजी-
मन मेरे भटक रह्यो क्यूँ कर तू
समझे क्यों न जग रीति कूँ !
सब राही स्वारथ के संगी
कोऊ न तेरे संग आवैगो !
बिन पाई कोई भाव न देवे
अर्थ कहाँ तू अब पावैगो !!
रुग्ण है काया मति हु मंद है
बय भी पकी अब का धावैगो !
राह न कोई न संग्रह है
ऋण के तले अब कहाँ जावैगो !!
इन्द्रिय भी अब शिथिल भई हैं
कैसें मीत तू कब जागैगो !
मिथ्या स्वप्न रचे बाबरे क्यों
पहुँच दूर को समझावैगो !!
बालू ते यदि तेल निकाले
समझ ले यामें का पावैगो !
मूरख ह्रदय चेत ले अब तो
यम के फंद ते कोन छुडावैगो !!
शंकर कहे गोविन्द भजन को
यही एक तोहे पार लगावैगो !
शरण गह सब भाँति श्याम की
कृपा अनोखी सब पावैगो !!
तजि माया रूपी भव बंधन
निर्मल मति तू हो जावैगो !
आपद-विपद-क्लेश-भय सबसों
मुक्त ह्वै परमानन्द पावैगो !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
कित उनकी मुष्कान रे !
मैं दीवाना ठगा रह गया !
काऊ न राखे मान रे !!
आकर लुटा हुआ मैं भिकारी !
सफल होगये चतुर शिकारी!
हो गयी चूक मैं चेत न पायो !
वृथा समय मैंने यूँही गंवायो !
अपने हु ह्वै गए आन रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
कित उनकी मुष्कान रे !!
स्वप्न के बादल फट गए सबरे !
चली हवा जो सच्चाई !
दुखी वेचारे मन मेरे प्यारे !
समझे क्यों न गहराई !
उठ कर चलदे अमर सुधा को !
न हो जहाँ कोई तन्हाई !
संग रहेंगे सखा हमारे !
गोविन्द-गोपाल-कन्हाई ! !
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
कित उनकी मुष्कान रे !!
इसी धरा पे पाई सफलता !
लगन के सच्चे वीरों ने !
तजि कायरता दौड़ पड़े जो !
कर्म के मीठे गीतों ने !
रेख बना योजना डगर की !
तोड़ बंधन जंजीरों को !
रख विश्वास नन्द-नंदन में !
भूल जा दुःख की लकीरों को !
हानि-लाभ-जीवन अरु मृत्यु !
यश-अपयश नहीं भान रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
कित उनकी मुष्कान रे !!
पार्थ-सारथी सुझा रहे तोहि !
करके गीता गान रे !
चिंतन श्याम में-लगन श्याम में !
प्रीत श्याम में राखि रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
कित उनकी मुष्कान रे !!
मुरलीधर की रूप माधुरी !
बना ले अपनी प्यास रे !
माखन-चाखन हार के संग-संग !
मीठो-माखन चाख रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
कित उनकी मुष्कान रे !!
भूल जा सबरी पीर अरु पीरा!
राधे-राधे जाप रे !!