Saturday, January 8, 2011

शरण गह सब भाँति श्याम की

श्री राधिका-जीवन नीलमणि  ! अहम् त्वां शरणम प्रपन्ना
-श्रीजी-
मन मेरे भटक रह्यो क्यूँ कर तू 
 समझे क्यों न जग रीति कूँ ! 
सब राही स्वारथ के संगी 
कोऊ न तेरे संग आवैगो ! 
बिन पाई कोई भाव न देवे 
अर्थ कहाँ तू अब पावैगो !! 
रुग्ण है काया मति हु मंद है 
बय भी पकी अब का धावैगो ! 
राह न कोई न संग्रह है 
ऋण के तले अब कहाँ जावैगो !! 
इन्द्रिय भी अब शिथिल भई हैं 
कैसें मीत तू कब जागैगो  ! 
मिथ्या स्वप्न रचे बाबरे क्यों 
पहुँच दूर को समझावैगो !! 
बालू ते यदि तेल निकाले 
समझ ले यामें का पावैगो ! 
मूरख ह्रदय चेत ले अब तो 
यम के फंद ते कोन छुडावैगो !! 
शंकर कहे गोविन्द भजन को 
यही एक तोहे पार लगावैगो ! 
शरण गह सब भाँति श्याम की 
कृपा अनोखी सब पावैगो !! 
तजि माया रूपी भव बंधन 
निर्मल मति तू हो जावैगो ! 
आपद-विपद-क्लेश-भय सबसों 
 मुक्त ह्वै परमानन्द पावैगो !!  
कहाँ गए वे सुहाने पंछी
कित उनकी मुष्कान रे ! 
मैं दीवाना ठगा रह गया !
काऊ न राखे मान रे !!
आकर लुटा हुआ मैं भिकारी !
सफल होगये चतुर शिकारी!
हो गयी चूक मैं चेत न पायो !
वृथा समय मैंने यूँही गंवायो !
अपने हु ह्वै गए आन रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
स्वप्न के बादल फट गए सबरे !
चली हवा जो सच्चाई ! 
दुखी वेचारे मन मेरे प्यारे !
समझे क्यों न गहराई ! 
उठ कर चलदे अमर सुधा को !
न हो जहाँ कोई तन्हाई ! 
संग रहेंगे सखा हमारे !
गोविन्द-गोपाल-कन्हाई ! ! 
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
 इसी धरा पे पाई सफलता !
लगन के सच्चे वीरों ने ! 
तजि कायरता दौड़ पड़े जो !
कर्म के मीठे गीतों ने ! 
रेख बना योजना डगर की !
तोड़ बंधन जंजीरों को !
रख विश्वास नन्द-नंदन में !
भूल जा दुःख की लकीरों को !
हानि-लाभ-जीवन अरु मृत्यु !
यश-अपयश नहीं भान रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
पार्थ-सारथी सुझा रहे तोहि !
करके गीता गान रे ! 
चिंतन श्याम में-लगन श्याम में !
प्रीत श्याम में राखि रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
मुरलीधर की रूप माधुरी !
बना ले अपनी प्यास रे !
माखन-चाखन हार के संग-संग !
मीठो-माखन चाख रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
भूल जा सबरी पीर अरु पीरा!
   राधे-राधे जाप रे !!